Sunday, 16 August 2015

"सन्नाटे का शोर"

"सन्नाटे का शोर"

आजादी की हसरतों को जिन्होंने पंख दिए,
आज बेड़ियों से लिपटी आजादी देख रोते होंगे.
स्वराज की चाह रखने वालों का भारत,
आज शायद उम्मीदें छोड़ बैठा होगा.
आगे बढ़ने के सपनो का इंक़लाब,
न जाने कब का सो गया होगा.
समय की मार ने वीरों की यादों को खँडहर कर दिया,
जहाँ कभी कोई दीप जला लेता है.
हिमालय के खून मांगने पर,
दो बूँद तिलक के छोड़ सब कुछ तुम्हारा कहने वालों का जोश,
आज खुदगर्जों के ठन्डे दिलों सा जम गया.
हम आज़ादी की ख़ुशी मैं कुछ इस कदर भागे,
की भूल गए की जाना कहाँ था.
इस शोर भरी ज़िन्दगी में सन्नाटा ओढे बैठे होंगे वो लोग,
जिन्होंने ये दो भारत देखे.

                                         - प्रतीक नेगी

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